Rumored Buzz on apsara sadhna
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अप्सरा के रूप और स्वरूप को हिन्दू मिथकों और पौराणिक कथाओं में विभिन्न ढंग से वर्णित किया गया है। अप्सरा को अत्यंत सुंदर, आकर्षक, और मनोहारी रूप में प्रस्तुत किया गया है। उनका स्वरूप आकर्षकता, सौंदर्य, और उन्हें प्राकृतिक सौंदर्य का प्रतीक माना जाता है।
कामेच्छी अप्सरा साधना परिचय- अमराबती स्वर्गलोक के देबराज इन्द्र की राजधानी का ऐश्वर्य बहाँ की १६,१०८ अप्सराओं की कृपा का प्रसाद कहा जाता है । इन १६,१०८ में से १०८ अप्सराएं तो इन्द्र भगबान ने बेदों की १०८ ऋचाओं की साधना करके स्वयं प्रकट की थीं । इन १०८ की नायिका मेंनका और रम्भा आदि हैं । नर नारायण की तपस्या से डरकर इन्द्रदेब ने रम्भा, मेंनका आदि १६ प्रमुख अप्सराएं भेजीं । तब नर ने क्षुब्ध होकर अपनी दायीं जंघा पर हथेली मारकर उर्बशी आदि १६००० अप्सराएं उत्पन्न करके इन्द्र के पास भेज दीं ।
आत्म-ज्ञान एवं आत्म-सम्मोहन: अप्सरा साधना के माध्यम से साधक अपनी आत्मा को अधिक समझता है और आत्म-सम्मोहन का अनुभव करता है। यह साधना उसे आत्म-प्रेम और आत्म-साक्षात्कार की दिशा में ले जाती है।
साधना के प्रति पूर्ण विश्वास रखना जरूरी है, और साधना के प्रति समर्पण दिखाना भी।
The true secret to prosperous practice lies in knowing the energies included, placing apparent intentions, and retaining equilibrium in one’s lifestyle.
साधना को निश्चित समय पर शुरू करें, और १०-१५ मिनट बढ़ते जाएं।
शिव-उपासना में रुद्राक्ष की माला और यंत्र का प्रयोग करें।
अप्सराएं हिन्दू पौराणिक कथाओं और आध्यात्मिक ग्रंथों में वर्णित देवीयों में से एक प्रकार की होती हैं। वे स्वर्गीय नायिकाओं के रूप में प्रस्तुत की जाती हैं जो अप्सरा लोक में निवास करती हैं।
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नियमित साधना: साधक को नियमित रूप से साधना करनी चाहिए। यह साधना का अभ्यास नियमितता और निष्ठा के साथ किया जाना चाहिए।
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आत्मिक अशांति: अप्सरा साधना के अभ्यास में लगाव अत्यधिक होने पर, आत्मिक अशांति या मानसिक अस्थिरता का सामना किया जा सकता है।
आत्म-समर्पण और सेवा: click here साधक को आत्म-समर्पण और सेवा की भावना से साधना करनी चाहिए। इसके माध्यम से साधक अप्सरा देवियों के संग संवाद करते हैं और उनसे आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करते हैं।